सनातन धर्म में मंत्रों की विशेष प्रतिष्ठा है। मंत्र शब्द की बजाय दिव्य शक्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से युक्त होते हैं। उन महान मंत्रों में से एक है महामृत्युंजय मंत्र, जिसे भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसे त्र्यंबक मंत्र भी कहते हैं क्योंकि इसमें भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी रूप में याद किया जाता है।यह मंत्र न ही मृत्यु भय को दूर करता है, बल्कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों, रोग, मानसिक अशांति और पितृ दोष जैसी बाधाओं को भी नष्ट कर देता है।
महामृत्युंजय मंत्र
“ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्。”

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
इस मंत्र में साधक भगवान शिव का आह्वान करते हुए प्रार्थना करता है कि जैसे खीरा बेल से सहज रूप से अलग हो जाता है, वैसे ही साधक मृत्यु और बंधन से मुक्त होकर अमृतत्व को प्राप्त करे।
त्र्यंबकं
तीन नेत्रों वाले भगवान शिव
यजामहे
जिनकी हम उपासना करते हैं
सुगंधिं
जो अपने गुणों से संसार को सुवासित करते हैं
पुष्टिवर्धनम्
जो प्राणियों का पोषण करते हैं
उर्वारुकमिव
जैसे खीरा बेल से अलग होता है
मृत्योर्मुक्षीय
हमें मृत्यु से मुक्ति मिले
मामृतात्
हमें अमरत्व प्राप्त हो
महामृत्युंजय मंत्र का महत्व
यह मंत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
व्यक्ति को अकाल मृत्यु से रक्षा प्रदान करता है।
गंभीर बीमारियों और कष्टों को दूर करता है।
भय, चिंता और अवसाद को शांत करता है।
साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
महामृत्युंजय मंत्र जप की विधि
जप के समय प्रातःकाल या रात्रि साधारण रूप से उपयुक्त जाना जाता है।
रुद्राक्ष की माला का उपयोग मंत्र जप के लिए करना चाहिए।
जप के दौरान पूर्व या उत्तर की तरफ दिशा मुख रखें।
स्वच्छ संदिग्ध पहनकर भगवान शिव की मूर्ति अथवा शिवलिंग के सामने बैठें।
मंत्र का जप सمین संभव 108 बार (1 माला) अवश्य करें।
अधिकतम फलती हुई बातों के लिए 1.25 लाख बार मंत्र जप करने की विधि है।
महामृत्युंजय जप के लाभ
अकाल मृत्यु से बचाव होता है।
ग्रह दोष और कालसर्प दोष की शिक्षा कम होती है।
मानसिक शांति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
रोगों में शांति और आयु में वृद्धि होती है।
परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
कब कराना चाहिए महामृत्युंजय जाप?
जब व्यक्ति किसी गंभीर रोग से ग्रस्त हो।
जीवन में बार-बार दुर्घटनाएं या संकट आ रहे हों।
कुंडली में कालसर्प दोष, पितृ दोष या ग्रह पीड़ा हो।
व्यवसाय, नौकरी या परिवार में लगातार असफलताएं मिल रही हों।
जब साधक मानसिक अशांति और भय से पीड़ित हो।
निष्कर्ष
महामृत्युंजय मंत्र एक साधारण मंत्र नहीं है, किंतु भगवान शिव का एक महामंत्र जो साधक को मृत्यु भय से बचाकर जीवन को सुख, शांति और दीर्घायु से भर देता है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष, पितृ दोष या अन्य ग्रहबाधाएँ हों, उनके लिए यह मंत्र अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है।
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लेखक: शिवेंद्र गुरु जी
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महामृत्युंजय मंत्र से जुड़े सामान्य प्रश्न
महामृत्युंजय मंत्र कितने बार जपना चाहिए?
प्रतिदिन कम से कम 108 बार जप करना शुभ माना जाता है। विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए 1.25 लाख बार जप कराया जाता है।
क्या महामृत्युंजय जप से रोग दूर हो सकते ह?
हाँ, इस मंत्र में दिव्य ऊर्जा होती है जो मानसिक और शारीरिक रोगों को दूर करने में मदद करती है।
महामृत्युंजय जप कोई कौन कर सकता है?
यह जप कोई भी कर सकता है। लेकिन विशेष अनुष्ठान और पूर्ण विधि से करवाने के लिए योग्य और अनुभवी पंडित की आवश्यकता होती है।
महामृत्युंजय जाप कहाँ करना चाहिए?
शिवलिंग के सामने या घर के पूजा स्थल पर किया जा सकता है। विशेष रूप से त्र्यंबकेश्वर (नासिक) का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कौन से दोष दूर करता है?
यह मंत्र विशेष रूप से कालसर्प दोष, पितृ दोष और ग्रहदोषों को शांति प्रदान करता है।
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