ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गम्भीर दोष के रूप में माना गया है। यह दोष तब होता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य, चंद्रमा, राहु, केतु या शनि जैसे ग्रह अशुभ स्थिति में होंगे। पितृ दोष का सीधा संबंध हमारे पूर्वजों और उनकी अपूर्ण इच्छाओं, अधूरे कर्मों या उनसे जुड़ी नकारात्मक ऊर्जाओं से होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब किसी व्यक्ति के पूर्वजों की आत्मा शांति प्राप्त नहीं कर पाती या श्राद्ध कर्म सही प्रकार से नहीं किए जाते, तो उनके वंशजों की कुंडली में पितृ दोष बनता है। इस दोष के कारण परिवार में अशांति, आर्थिक तंगी, संतान सुख में बाधा और कई प्रकार की मानसिक व शारीरिक परेशानियाँ सामने आती हैं।

पितृ दोष कैसे बनता है?
1. ग्रहों की स्थिति के कारण
कुंडली में विशेष रूप से नवम भाव (धर्म और पितृ भाव) अगर राहु-केतु या शनि के अधिकार में आ जाए तो पितृ दोष का निर्माण होता है। नवम भाव पिता और पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करता है।
- यदि सूर्य अशुभ भाव में राहु-केतु से पीड़ित हो तो पितृ दोष होता है।
- यदि नवम भाव का स्वामी कमजोर हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो भी पितृ दोष बनता है।
2. पितरों की अपूर्ण इच्छाएँ
यदि पूर्वजों की आत्मा अधूरी इच्छाओं या अपूर्ण कर्मों के कारण शांति नहीं पा पाती, तो उनकी असंतुष्टि वंशजों को प्रभावित करती है।
3. श्राद्ध और तर्पण न करने से
यदि वंशज अपने पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण विधिपूर्वक नहीं करते, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में तर्पण का विशेष महत्व है।
4. पाप कर्मों के कारण
यदि पूर्वजों ने अपने जीवन में गलत कर्म किए हों, जैसे – धर्म विरोधी काम, दूसरों को कष्ट पहुँचाना, गौ हत्या या अन्य पाप – तो उनकी आत्मा असंतुष्ट रहती है और पितृ दोष बनता है।
5. संतान द्वारा गलत आचरण
कभी-कभी संतान द्वारा किए गए पाप या गलत आचरण भी पूर्वजों की आत्मा को दुखी करते हैं, जिससे पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है।
पितृ दोष के प्रभाव
- परिवार में कलह और अशांति
- संतान प्राप्ति में बाधा
- विवाह में विलंब या समस्या
- आर्थिक तंगी और धन हानि
- स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ
- अचानक अपयश या सम्मान की हानि
- करियर और शिक्षा में रुकावटें
पितृ दोष की पहचान
ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष की पहचान कुंडली देखकर की जाती है। इसके अलावा जीवन में बार-बार आने वाली समस्याएँ भी इसके संकेत हो सकते हैं।
- यदि घर में अचानक बार-बार मृत्यु होती।
- संतान सुख में बाधा आती है।
- बिना कारण के अशांति और क्लेश बढ़ते हैं।
- हवा में पक्षियों का बार-बार आकर रोना या कौवे का लगातार आवाज़ करना।
पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
श्राद्ध और तर्पण करना
श्राद्ध पक्ष में गंगा जल से तर्पण करना आवश्यक है।
पिंडदान
गया, प्रयागराज या त्र्यंबकेश्वर में पिंडदान करना लाभकारी है।
पितृ दोष निवारण पूजा
विशेष रूप से त्र्यंबकेश्वर, नासिक में यह पूजा करने से दोष शांति पाता है।
गाय, ब्राह्मण और दीन-दुर्जनों को दान
अन्न, वस्त्र और धन का दान करना।
रुद्राभिषेक
भगवान शिव की वंदना करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
कौओं को भोजन
श्राद्ध के समय कौओं को भोजन कराना शुभ माना गया है।
निष्कर्ष
पितृ दोष का उत्पादन तब होता है जब पूर्वजों की आत्मा असंतुष्ट रहती है या जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल होती है। इसका असर पूरे परिवार को होता है, लेकिन सही उपाय और पूजा करने पर इससे मुक्ति पाई जाती है। विशेषकर त्र्यंबकेश्वर में पितृ दोष निवारण पूजा करने पर जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
यदि आप पितृ दोष या कालसर्प दोष से पीड़ित हैं, तो शिवेंद्र गुरु जी त्र्यंबकेश्वर में इन सभी पूजाओं के श्रेष्ठ और अनुभवी पंडित हैं। उनकी विधिपूर्वक कराई गई पूजा से न केवल पितृ दोष की शांति होती है बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है।
लेखक: शिवेंद्र गुरु जी
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पितृ दोष से जुड़े सामान्य प्रश्न
पितृ दोष कब बनता है?
जब जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, केतु, शनि या नवम भाव प्रभावित होते हैं, या पूर्वजों की आत्मा असंतुष्ट रहती है, तब पितृ दोष बनता है।
क्या पितृ दोष से संतान सुख में बाधा आती है?
हाँ, पितृ दोष के कारण संतान प्राप्ति में कठिनाई आती है या संतान सुख बाधित होता है।
पितृ दोष का सबसे सरल उपाय क्या है?
श्राद्ध, तर्पण और पितृ दोष निवारण पूजा करना सबसे प्रभावी उपाय है।
क्या पितृ दोष जीवन भर रहता है?
नहीं, यदि उचित पूजा, पिंडदान और तर्पण किया जाए तो पितृ दोष समाप्त हो सकता है।
पितृ दोष की शांति के लिए कौन-सा स्थान सबसे श्रेष्ठ है?
त्र्यंबकेश्वर (नासिक), गया और प्रयागराज पितृ दोष निवारण के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान माने जाते हैं।
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