हिन्दू धर्म में पूर्वजों की याद दिलाना और उनका श्राद्ध करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। पितरों के आशीर्वाद से ही व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता आती है। जब किसी परिवार में पितृ दोष हो जाता है, तो जीवन में कई बाधाएँ, कष्ट और आर्थिक समस्याएँ आ जाती हैं। इन्हीं दोषों की शांति और पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। यह विशेष श्राद्ध कर्म त्र्यंबकेश्वर (नासिक, महाराष्ट्र) और गोकर्ण (कर्नाटक) जैसे पवित्र स्थलों पर विशेष रूप से सम्पन्न किया जाता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व
त्रिपिंडी श्राद्ध साधारण श्राद्ध से भिन्न होता है। सामान्य रूप से श्राद्ध पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है, परंतु जब कोई परिवार में पितरों की आत्माएँ असंतुष्ट हों या श्राद्ध कर्म कई वर्षों से न किए जा रहे हों, तब वे “पितृ दोष” उत्पन्न करते हैं। इस दोष के प्रभाव से –
संतान सुख में बाधा
विवाह में विलंब
व्यापार में नुकसान
परिवार में टकराहट
बिना समय पर मृत्यु या बीमारियाँ
जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐसे में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध की विशेषता
1. यह श्राद्ध पितरों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी मृतात्माओं के लिए किया जाता है, जिनका विधिवत संस्कार या श्राद्ध न हुआ हो।
2. यह पितृ दोष, कालसर्प दोष और नारायण नागबली आदि दोषों के निवारण में भी लाभकारी माना जाता है।
3. त्रिपिंन्दी श्राद्ध करने से पिता, पितामह और प्रपितामह तीन पीढ़ियों की आत्माएँ शांत होती हैं।
4. इसको विशेषतः पितृ पक्ष या अमावस्या तिथि पर करना उत्कृष्ट माना गया है।
त्रिपिंडी श्राद्ध की विधि
त्रिपिंडी श्राद्ध करते हुए विद्वान आचार्य या पंडित की सहायता लेना आवश्यक है। इसकी विधि निम्नलिखित है –
संकल्प
सबसे पहले यजमान पंडित जी के मार्गदर्शन में संकल्प लेकर पितरों को स्मरण करता है।
पिंडदान
चावल, जौ, तिल और घी से बने पिंड तीन अलग-अलग स्थानों पर रखे जाते हैं।
होम और मंत्रोच्चार
वैदिक मंत्रों के साथ अग्नि में आहुति दी जाती है।
तर्पण
जल अर्पण कर पितरों को तृप्त किया जाता है।
ब्राह्मण भोजन और दान
श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना बहुत जरूरी माना गया है।
त्रिपिंदी श्राद्ध से मिलने वाले लाभ
1. पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है।
2. परिवार से पितृ दोष दूर होता है।
3. संतान सुख और वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
4. व्यापार, करियर और आर्थिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
5. परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का निवास होता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध कहाँ करना है?
भारत में कई पवित्र स्थान श्राद्ध कर्म के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन विशेष रूप से –
त्र्यंबकेश्वर (नासिक, महाराष्ट्र)
गोकर्ण (कर्नाटक)
गया (बिहार)
इन स्थानों को त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इनमें से त्र्यंबकेश्वर मंदिर पितृ दोष निवारण और कालसर्प दोष पूजा के लिए विश्वप्रसिद्ध है।
निष्कर्ष
त्रिपिंडी श्राद्ध एक अनूठी वैदिक समाजिक प्रक्रिया है, जिसके अधीन पितरों की आत्माओं को शांति प्रदान की जाती है और परिवार से सम्बद्ध पितृ दोषों का निवारण किया जाता है। जो मानव अपने जीवन में निरंतर बाधाएँ, आर्थिक समस्याएँ या पारिवारिक क्लेश का सामना कर रहा है, उसके लिए यह श्राद्ध अत्यंत प्रभावकारी होता है।
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लेखक: शिवेंद्र गुरु जी
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त्रिपिंडी श्राद्ध से जुड़े सामान्य प्रश्न
त्रिपिंडी श्राद्ध कब किया जाता है?
यह विशेष रूप से पितृ पक्ष या अमावस्या तिथि पर किया जाता है।
क्या त्रिपिंडी श्राद्ध से पितृ दोष दूर होता है?
हाँ, यह श्राद्ध पितृ दोष निवारण के लिए बहुत प्रभावी माना गया है।
कौन क्या कर सकता है त्रिपिंडी श्राद्ध का?
इसे परिवार का सबसे बड़ा पुत्र या पंडित जी के निर्देश में कोई भी योग्य सदस्य कर सकता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध में क्या अर्पण किया जाता है?
इसमें चावल, तिल, घी और जल से पिंड पितरों को समर्पित किये जाते हैं।
त्रिपिंडी श्राद्ध करने का श्रेष्ठ स्थान क्या है?
त्र्यंबकेश्वर (नासिक) और गया (बिहार) इस श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ स्थान माने जाते हैं।
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